अनदेखी बच्चों के नहीं बने जरूरी कागजात, जिम्मेदार भी नहीं दे रहे ध्यान
योजना का लाभ लेने के लिए भटक रहे अनाथ बच्चे
पन्ना ब्यूरो -पन्ना के गुनौर विकासखंड के अंतर्गत आने वाली आदिवासी बहुल ग्राम पंचायत कुलगवा में, पिछले दो सालों से कई अनाथ आदिवासी बच्चे मुख्यमंत्री बाल आशीर्वाद योजना का लाभ पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, इन बच्चों के माता-पिता का निधन हुए कई साल बीत चुके हैं, लेकिन रिकॉर्ड तैयार न होने की वजह से आज तक उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिल पाया है।
जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही
कुलगवा के शिक्षकों ने बताया कि भक्ति कोल और उनकी पत्नी का निधन करीब दो साल पहले हो चुका है, जबकि महेश कोल और उनकी पत्नी का निधन तीन-चार साल पहले मासूम बच्चों, जिनके माता-पिता नहीं रहे, उनके बच्चे पप्पी बाई और आशा बाई, आज भी इस योजना का लाभ मिलने का इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि हर ग्राम पंचायत में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं मौजूद हैं, जो नियमित रूप से बच्चों का सर्वे करती हैं और उनकी जानकारी वरिष्ठ कार्यालय को भेजती हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या इन अनाथ बच्चों की जानकारी विभाग को नहीं भेजी गई होगी?अगर नहीं भेजी गई, तो इसका जिम्मेदार कौन है और संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? कल्दा क्षेत्र में भी यही हाल है कलेक्टर ने पवई जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी अखिलेश उपाध्याय को इन बच्चों के रिकॉर्ड बनवाने की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन आज भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। कई बच्चे तो ऐसे हैं जिनके माता-पिता 8-10 साल पहले गुजर गए थे और अब वे 18 साल से ऊपर के हो गए हैं। पिछले इतने सालों से उन्हें योजना का लाभ नहीं मिला, और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यह विभाग की घोर लापरवाही को दर्शाता है, जिससे इन बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है।
जमीनी हकीकत कुछ और है ग्राम पंचायत कुलगवा के सरपंच कमलेश यादव ने भी इस बात को स्वीकार किया कि दो परिवार ऐसे हैं जिनके माता-पिता का निधन पहले हो चुका है, और एक परिवार में दो महीने पहले ही ऐसी दुखद घटना घटी है। सरपंच ने भी यह माना कि इन बच्चों के रिकॉर्ड आज तक नहीं बन पाए, जिसकी वजह से उन्हें योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। एक तरफ जहां सरकार प्रदेश के विकास के लिए कई योजनाएं चला रही है, वहीं दूसरी तरफ आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जमीनी हकीकत कुछ और ही है। जब इस मामले में महिला एवं बाल विकास विभाग की ब्लॉक परियोजना अधिकारी कीर्ति सिंह से बात की गई, तो उन्होंने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए बार - बार बच्चों का नाम पूछा। जब उनसे यह पूछा गया कि इन बच्चों को दो साल से योजना का लाभ क्यों नहीं मिला, तो उन्होंने उल्टा संवाददाता से ही बच्चों के नाम पूछना शुरू कर दिया, यह कहते हुए कि जब नाम पता चलेंगे, तभी वे वहां पहुंचेंगी।









